भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किंतु नहीं मैं / राजकुमार कुंभज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:06, 26 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकुमार कुंभज |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <P...' के साथ नया पन्ना बनाया)
लौ है कि बुझती नहीं
भूल है कि भूलती नहीं ज़रा-सी
प्रेम नहीं मानता कोई भी फ़रमान
तुमको जाना है जाओ स्वर्ग
अथवा स्वर्ग की तलाश में कहीं भी
किंतु नहीं मैं और कहीं
रचनाकाल : 2012