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ख़ूब रू ख़ूब काम करते हैं / वली दक्कनी
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ख़ूब रू ख़ूब काम करते हैं
यक निगह में तमाम करते हैं
देख ख़ूबाँ कूँ वक्त़ मिलने के
किस अदा सूँ सलाम करते हैं
क्या वफ़ादार हैं कि मिलने में
दिल सूँ सब राम-राम करते हैं
कम निगाही सूँ देखते हैं वले
काम अपना तमाम करते हैं
खोलते हैं जब अपनी ज़ुल्फ़ाँ कूँ
सुबह आशिक़ कूँ शाम करते हैं
साहब-ए-लफ़्ज़ उसको कह सकते
जिस सूँ ख़ूबाँ कलाम करते हैं
दिल लिजाते हैं ऐ 'वली' मेरा
सर्व क़द जब खि़राम करते हैं