भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीतते बरस लो नमन! / प्रतिभा सक्सेना

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:37, 8 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} {{KKCatKavita}} <poem> जुड़ ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुड़ गया एक अध्याय और,
गिनती आगे बढ़ गई ज़रा,
जो शेष रहा था कच्चापन
परिपक्व कर गए तपा-तपा .
आभार तुम्हारा बरस,
कि
तोड़े मन के सारे भरम!

फिर से दोहरा लें नए पाठ,
दो कदम बिदा के चलें साथ .
बढ़ महाकाल के क्रम में लो स्थान,
रहे मंगलमय यह प्रस्थान!
चक्र घूमेगा कर निष्क्रम,
नये बन करना शुभागमन!
अभी लो नमन!