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तेरे मुख पर नाज़नीं यो निक़ाब / वली दक्कनी
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तेरे मुख पर नाज़नीं यो निक़ाब
झलकता है ज्यूँ मत्लए-आफ़ताब
अदा फ़हम के दिल की तस्वीर कूँ
तिरा क़द है ज्यूँ मिसरए-ए-इंतिख़ाब
बजा है तिरे हुस्न की ताब सूँ
तिरी ज़ुल्फ़ खाती है गर पेच-ओ-ताब
नज़र कर के तुझ मुख की साफ़ी उपर
हुई शर्म सूँ आरसी ग़र्क-ए-आब
तिरे अक्स पड़ने सूँ ऐ गुलबदन
अजब नईं अगर आब होवे गुलाब
तिरे वस्ल में इस क़दर है निशात
कि महमिल कूँ आये हैं राहत सूँ ख्व़ाब
करें बख्त़ मेरे अगर टुक मदद
'वली' उस सजन सूँ मिलूँ बेहिसाब