भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू अगर दिल-नवाज़ हो जाए / अलीम 'अख्तर'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:02, 28 मार्च 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलीम 'अख्तर' }} {{KKCatGhazal}} <poem> तू अगर दिल-न...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तू अगर दिल-नवाज़ हो जाए
सोज़ हम-रंग-ए-साज़ हो जाए
दिल जो आगाह-ए-राज़ हो जाए
हर हकीक़त मजाज़ हो जाए
लज़्ज़त-ए-ग़म का ये तक़ाज़ा है
मुद्दत-ए-ग़म दराज़ हो जाए
नग़मा-ए-इश्क़ छेड़ता हूँ मैं
ज़िंदगी नै-नवाज़ हो जाए
उस की बिगड़ी बने न क्यूँ ऐ इश्क़
जिस का तू कार-साज़ हो जाए
हुस्न मग़रूर है मगर तौबा
इश्क़ अगर बे-नियाज़ हो जाए
दर्द का फिर मज़ा है जब 'अख़्तर'
दर्द ख़ुद चारा-साज़ हो जाए