भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहाँ से आए बदरा / चश्मे बद्दूर (1981)
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:24, 29 मार्च 2013 का अवतरण
रचनाकार: इंदु जैन |
कहाँ से आए बदरा
घुलता जाए कजरा
कहाँ से आए बदरा
घुलता जाए कजरा
पलकों के सतरंगे दीपक
बन बैठे आँसू कि झालर
मोती का अनमोलक हीरा
मिट्टी में जा फिसला
कहाँ से आए बदरा ...
नींद पिया के संग सिधारी
सपनों की सूखी फुलवारी
अमृत होठों तक आते ही
जैसे विष में बदला
कहाँ से आए बदरा ...
उतरे मेघ या फिर छाये
निर्दय झोंके अगन बढ़ाये
बरसे हैं अब तोसे सावन
रोए मन है पगला
कहाँ से आये बदरा ...