भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

और का और मेरा दिन / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:28, 7 अप्रैल 2013 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन है
    किसी और का
    सोना का हिरन,
मेरा है
भैंस की खाल का
मरा दिन ।
यही कहता है
    वृद्ध रामदहिन
    यही कहती है
उसकी धरैतिन,
जब से
    चल बसा
    उनका लाड़ला ।