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हमेशा दिल वो हवस-ए-इंतिक़ाम / अहमद 'जावेद'

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हमेशा दिल वो हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा
ख़ुद अपना नाम भी दुश्मन के नाम पर रक्खा

वो बादशाह-ए-फ़िराक़-ओ-विसाल है उस ने
जो बार सब पर गिराँ था ग़ुलाम पर रक्खा

किये हैं सब को अता उस ने ओहदा ओ मंसब
मुझे भी सीना-ख़राशी के काम पर रक्खा

कोई सवार उठा है पस-ए-ग़ुबार-ए-फ़ना
क़ज़ा ने हाथ कुलाह ओ नियाम पर रक्खा

किसी ने बे-सर-ओ-पाई के बा-वजूद मुझे
ज़मीन-ए-सजदा ओ अर्ज़-ए-क़याम पर रक्खा