भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमेशा दिल वो हवस-ए-इंतिक़ाम / अहमद 'जावेद'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:57, 7 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद 'जावेद' }} {{KKCatGhazal}} <poem> हमेशा दिल व...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हमेशा दिल वो हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा
ख़ुद अपना नाम भी दुश्मन के नाम पर रक्खा
वो बादशाह-ए-फ़िराक़-ओ-विसाल है उस ने
जो बार सब पर गिराँ था ग़ुलाम पर रक्खा
किये हैं सब को अता उस ने ओहदा ओ मंसब
मुझे भी सीना-ख़राशी के काम पर रक्खा
कोई सवार उठा है पस-ए-ग़ुबार-ए-फ़ना
क़ज़ा ने हाथ कुलाह ओ नियाम पर रक्खा
किसी ने बे-सर-ओ-पाई के बा-वजूद मुझे
ज़मीन-ए-सजदा ओ अर्ज़-ए-क़याम पर रक्खा