भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 17 अप्रैल 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
स्तंभ शेष भय की परिभाषा
हिलो मिलो फिर एक डाल के
खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया
अपने पन में जीवन आया