भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़हर की क्यूँ निगाह है प्यारे / मुल्ला
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:07, 25 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद नारायण 'मुल्ला' }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख़...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ख़मोशी साज़ होती जा रही है
नज़र आवाज़ होती जा रही है
नज़र तेरी जो इक दिल की किरन थी
ज़माना-साज़ होती जा रही है
नहीं आता समझ में शोर-ए-हस्ती
बस इक आवाज़ होती जा रही है
ख़मोशी जो कभी थी पर्दा-ए-ग़म
यही ग़म्माज़ होती जा रही है
बदी के सामने नेकी अभी तक
सिपर-अंदाज़ होती जा रही है
ग़ज़ल 'मुल्ला' तेरे सेहर-ए-बयाँ से
अजब एजाज़ होती जा रही है