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बर्फ़ पर दिखाई दी तू मुझे आज
उतरा हो जैसे काला फ़रिश्ता कोई
तुझ में झलके है आभिजात्य की छाप
उपहारित है जो उस ईश्वर से निर्मोही
नियति ने जीवन में पहले से ही
तय कर रखा है तेरा स्थान
है किसी गिरजे की मुख्य-प्रतिमा तू
पर तुझे न इसका ज़रा भी भान
अनुराग ईश का जो तू लाई धरा पर
वह हमारी प्रीति से जुड़ जाए
हहराये रक्त जो हम में तूफ़ानी
मन-मन्दिर पर तेरे वह कभी न छाए
रंग तेरा गदबदा मरमर-सा
झलके तेरे चीथड़ों पर मायावी
देह-कमल की पंखुरियों पर छलके
पर गाल तेरे कभी हों न गुलाबी
(रचनाकाल : 1910)