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हर चेहरे की यह तहरीर / पवन कुमार

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हर चेहरे की यह तहरीर
कुछ बाजू और कुछ तक’दीर

पेट की ख़ातिर सारे करतब
डाकू हो या कोई फ’कीर

तुम अपनी खुद राह तलाशो
आबे-रवाँ की तुम्हें नज़ीर

बेचारा क्या ख़ाक बचेगा
एक परिंदा इतने तीर

तेरे मेरे सुख़न बेअसर
एक थे ‘ग़ालिब’ एक थे ‘मीर’

बाजू = बाहें, आबे-रवाँ = बहता हुआ पानी, नज़ीर = उदाहरण, सुख़न = कविता