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गूँजती क्यों प्राण-वंशी! / महादेवी वर्मा
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शून्यता तेरे हृदय की
आज किसकी साँस भरती?
प्यास को वरदान करती,
स्वर-लहरियों में बिखरती!
आज मूक अभाव किसने कर दिया लयवान वंशी?
अमिट मसि के अंक से
सूने कभी थे छिद्र तेरे,
पुलक अब हैं बसेरे,
मुखर रंगों के चितेरे,
आज ली इनकी व्यथा किन उँगलियों ने जान वंशी?
मृण्मयी तू रच रही यह
तरल विद्युत्-ज्वार-सा क्या?
चाँदनी घनसार-सा क्या?
दीपकों के हार-सा क्या?
स्वप्न क्यों अवरोह में, आरोह में दुखगान वंशी?
गूँजती क्यों प्राण-वंशी