भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ग़ज़ल तुमको सुनाना चाहता हूं / ‘अना’ क़ासमी
Kavita Kosh से
वीरेन्द्र खरे अकेला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:33, 2 जून 2013 का अवतरण
ग़ज़ल तुमको सुनाना चाहता हूं
मैं लहजा आज़माना चाहता हूं
ख़फ़ा हो जायें ना ज़िल्लेइलाही<ref>बादशाह</ref>
ज़रा सा मुस्कुराना चाहता हूं
चराग़ों को पसीना आ रहा है
तुम्हारे ख़त जलाना चाहता हूं
तकल्लुफ़ ने थका कर रख दिया है
कोई साथी पुराना चाहता हूं
ज़रा सी बात बाक़ी रह गई है
तुझे फिर से जगाना चाहता हूं
तअल्लुक़ बोझ बनता जा रहा है
बिछड़ने का बहाना चाहता हूं
शब्दार्थ
<references/>