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प्रवास / राजकमल चौधरी

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अपने गाछीक
फूल-पात नहि चिन्हैत छी
बूझल नहि अछि
वृक्ष सभक
लोक सभक
नाम बूझल नहि अछि
एतेक दिन एहि गाममे
अएना भ’ गेल
मोम जेना कारी सन अएना भ‘ गेल
हुनका चिन्हबाक चेष्टा करी
एखनहूँ ई सूझल नहि
आबहु होइए
एहि प्रकृतिसँ, एहि स्त्रीसँ, एहि नदीसँ
अपरिचिते रहि जाइ, एहि गामसं, धामसँ
प्रवासी हैबाक सभटा दुख, सभटा वेदना
हम एकसरे सहि जाइ
अपरिचिते रहि जाइ,
एतेक दिन एहि गाममे अएना भ’ गेल
मुदा, चिन्हार नहि अछि विकालक
एहि अन्हारमे
अपने घर आँगन
अपने घर आँगनमे चिकरै छी
हम अपने टा नाम
प्रवासी
नगरवासी छी हम
ई उपरात दैत‘छि
अपने टा गाम