भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मृति / बसंत त्रिपाठी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:35, 15 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बसंत त्रिपाठी }} {{KKCatKavita}} <poem> स्मृतिय...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्मृतियों के नीले ठहरे आसमान में
एक पतंग तैरती रहती है

एक चिड़िया
इस नीले को चीरती हुई निकल जाती है
एक जेट विमान
सफेद धुएँ की लकीर छोड़ता हुआ
गुम हो जाता है

लहरों की उजाड़ हँसी
रेतीली तटों पर बिखरती है
ठंडी नमकीन हवाएँ
चेहरे पर छोड़ जाती हैं चिपचिपापन

रात चुपके से आती है
शोर मचाती हुई चली जाती है
कुहरीली रातों में
चमगादड़ों की बेतरतीब उड़ानें
बदहवास-सी लगती हैं

इन दिनों मैं
कहाँ रहता हूँ
अपने वर्तमान में
वर्तमान में तो खाना खाता हूँ
सोता हूँ चलता-फिरता हूँ

घर लेकिन बनाता हूँ
स्मृतियों में ही

वहाँ एक टेबिल में
दो जाम से भरे गिलास हैं एक मेरे लिए
दूसरा पता नहीं किसके लिए
या शायद सबके लिए

नींद से भरी रातों में
एक गिलास खाली करने के लिए
चले आओ मेरी स्मृतियों में

इन दिनों
मैं अपनी स्मृतियों में ही रहता हूँ
क्योंकि वहीं जिंदा होने का एहसास बचा है

और यह
कितनी बुरी बात है!