भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यात्रा1 / कुमार अनुपम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:18, 24 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अनुपम }} {{KKCatKavita}} <poem> हम चले तो घ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हम चले
तो घास ने हट कर हमें रास्ता दिया
हमारे कदमों से छोटी पड़ जाती थीं पगडंडियाँ
हम घूमते रहे घूमती हुई पगडंडियों के साथ
हमारी लगभग थकान के आगे
हाजी नूरुल्ला का खेत मिलता था
जिसके गन्नों ने हमें
निराश नहीं किया कभी
यह उन दिनों की बात है जब
हमारी रह देखती रहती थी
एक नदी
हमने नदी से कुछ नहीं छुपाया
नदी पर चलाए हाथ पाँव
जरूरी एक लड़ाई-सी लड़ी
नदी ने
धारा के खिलाफ
हमें तैरना सिखाया.