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घर भी बस एक जगह है / मनोज कुमार झा

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यह अंतिम ठौर नहीं
यहाँ ही नहीं बीजों की पोटली अंतिम
यहा भी बस लालसा ही शहद की गाढ़ी झील सी नींद
       जिसमें सपनों के नुकीले हिमखंड भी न हिल सकें

मैं तो पके आम की गुठली

रसमय गूदा ही था बंधन मेरा
मगर अब वो गूदा भी नहीं तो कहाँ जाऊँ
यह भी एक जगह है
और हर जगह रहने के तय हैं वजूहात