भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग / महेश वर्मा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:41, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा }} {{KKCatKavita}} <poem> पृथ्वी पर कै...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पृथ्वी पर कैसे आई आग?
प्रश्न से काफी पहले से होती आई आग।
यज्ञ से या चोरी से, प्रार्थना या छल?
सूर्य से या तड़ित से, युद्ध या आशीष?
देवताओं के ही पास होनी थी, जो कैसे आई आग?
कैसा होता हमारा संसार आग से खाली?
एक बर्फ का गोला, एक सहमत जनसमूह?
कहाँ जाते प्रदक्षिणा को चले हुए अनंत कदम?
किन शून्य शिखरों पर टँगे होते आँच तपे गान?
ठंडी क्रूर योजनाओं के विस्तार को कैसे कोई करता पार
बगैर आग की तलवार?
आग की नाव पर करे हम पार जीवन का समुद्र,
आग में शेष नहीं होता अगर आत्मा का जल -
तो कहाँ करते अपना तर्पण
हम आग से खाली इस संसार में।