भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़ाएदा क्या तुम्हें सुनाने का / महेश चंद्र 'नक्श'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:45, 30 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीरज़ादा क़ासीम |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पन्ना बनाया)
फ़ाएदा क्या तुम्हें सुनाने का
मौत उनवाँ है इस फ़साने का
हम भी अपने नहीं रहे ऐ दिल
किस से शिकवा करें ज़माने का
ज़िन्दगी चौंक चौंक उट्ठी है
ज़िक्र सुन कर शराब-ख़ाने का
किस की आँखों में आए हैं आँसू
रूख़ बदलने लगा ज़माने का
बर्क़ नज़रों में कूँद उठती है
नाम सुनते ही आश्याने का
‘नक्श’ कश्ती के ना-ख़ुदा वो है
लुत्फ़ है आज डूब जाने का