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एक पीली शाम / शमशेर बहादुर सिंह

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एक पीली शाम
      पतझर का जरा अटका हुआ पत्ता
शान्त
मेरी भावनाओं में तुम्‍हारा मुखकमल
कृश म्‍लान हारा-सा
     (कि मैं हूँ वह
मौन दर्पण में तुम्‍हारे कहीं?)

     वासना डूबी
     शिथिल पल में
     स्‍नेह काजल में
     लिये अद्भुत रूप-कोमलता

अब गिरा अब गिरा वह अटका हुआ आँसू
सान्‍ध्‍य तारक-सा
      अतल में।

[1953]