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हमारा राज़-दाँ कोई नहीं है / 'मुमताज़' मीरज़ा
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हमारा राज़-दाँ कोई नहीं है
मोहब्बत की ज़बाँ कोई नहीं है
हर इक ग़ुचाँ है मुरझाया हुआ सा
चमन में बाग़-बाँ कोई नहीं है
क़फ़स से छूट कर जाएँ कहाँ हम
हमारा आशियाँ कोई नहीं है
कहाँ जाएँ ये दरगांदा गुसाफ़िर
अमीर-ए-कारवाँ कोई नहीं है
अँधेरे रास्ते रोके खड़े हैं
चराग़-ए-कारवाँ कोई नहीं है
हैं पज़-मुर्दा तेरी यादों की कलियाँ
बहार-ए-जावेदाँ कोई नहीं है
इबारत है हयात ओ मर्ग तुमसे
हमारी दास्ताँ कोई नहीं है
यहाँ हर जिन्स बिेक जाती है ‘मुमताज’
सुख़न का क़द्र-दाँ कोई नहीं है