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ये दश्त को दमन कोह ओ कमर किस के लिए है / निश्तर ख़ानक़ाही
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ये दश्त को दमन कोह ओ कमर किस के लिए है
हर लम्हा ज़मीं गर्म-ए-सफ़र किस के लिए है
किस किस के मुक़ाबिल है मेरे कुव्वत-ए-बाज़ू
बिफरी हुई मौजों में भँवर किस के लिए है
जा जा के पलट आते हैं किस के लिए मौसम
ये शाम शफ़क़ रात सहर किस के लिए है
हैं किस के तअल्लुक़ से मेरी आँख में आँसू
मुट्ठी में सदफ़ की ये गोहर किस के लिए है
अलफ़ाज़ है मफ़हूम से लब-रेज़ तो क्यूँ हैं
गर है तो दुआओं में असर किस के लिए है
बे-नींद गुज़र जाती हैं किस के लिए रातें
ये काविश-ए-फ़न अर्ज़-ए-हुनर किस के लिए हैं
किस के लिए ढलती हैं मेरी फ़िक्र की शामें
ये कल्ब-ए-हज़ीं दीदा-ए-तर किस के लिए है
उठता है सवालों से सवालों का धुँदलका
सब उसे के लिए है वो मगर किस के लिए है