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तुम ही बतलाओ मैं क्या हूँ / निश्तर ख़ानक़ाही
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खुदा हूँ, आदमी हूँ, देवता हूँ
मशीनों! तुम ही बतलाओ मैं क्या हूँ
समुंदर में भी शोले उग रहे हैं
ये किस मौसम में, मैं पैदा हुआ हूँ
कभी शायद कोई सोचेगा मुझको
अभी तक तो नहीं सोचा गया हूँ
मैं सब कुछ तो नहीं लफ़्ज़ों में अपने
बहुत कुछ ज़हन में बिखरा हुआ हूँ
मुझी पर ख़ुद मेरी हस्ती गिराँ है
मैं अपने बोइन से दोहरा हूँ
जो होठों पर अभी आई नहीं है
मैं उस आवाज़ का एहसास सा हूँ
कोई ऐ काश! इस आँधी को रोके
बड़ी मुश्किल से मैं यकज़ा हुआ हूँ