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फर्क / अनिता भारती
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अरी सुनो बहनों,
थोड़ा पास आओ
मत शरमाओ
शरमा जाने से
किसी के गुनाह कम नही हो जाते
अरी सुनो,
तुम्हे पसंद है
गोरा-गोरा गोल-गोल
सुंदर चांद
और उसकी चांदनी को पीना
हमें पसंद है
परिश्रम की आग में तपे
लाल तवे पर सिकती
रोटी की गंध
तुम्हे पसंद है
तुम्हारे भव्य मंदिर में रखे
दिव्य देव
और हमें पसंद है
उन पर उंगली उठाना
तुम्हे पसंद है
शब्दों के खेल में
जीवन के पर्याय बताना
प्यार सेक्स बलात्कार
यौनिकता पर थोड़ा
रुमानी होते हुए चर्चा छेड़ना
और हमें पसंद है
इस खेल के व्यापार को
एक विस्फोटक डिब्बे में
बंद कर
एक तिल्ली से उड़ा देना
अब बताओ
कितना फ़र्क है
तुम में और हम में?