भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिटिया मलाला के लिए-2 / अनिता भारती

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:40, 13 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |संग्रह=एक क़दम मेरा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो गिद्धों, सुनो!
तुम लाख फैलाओ अपने पंजे
नहीं जकड़ पाओगे उस
नन्ही चिड़िया को
उसके इरादे, हिम्मत और जज्बे को
सुनो, तुम बहुत डरपोक हो
नहीं देते तुम तर्क का जबाब तर्क से
नहीं सुनते तुम
हक की बात हक से
तुम्हारे लिए
हक बराबरी
सबका मतलब
सिर्फ़ तुम्हारा रहम है
ताकि तुम्हारे खौफ की सत्ता
कायम रहे
ताकि एक भ्रम की सत्ता
कायम रहे

शिक्षा पहचान स्वतंत्रता
तुम्हारे लिए अपनी मौत
या मौत के फरमान से कहीं ज्यादा
खतरनाक वे सुबहें हैं
जिनसे उन अंधेरों का वजूद मिट जाये
जिनकी वजह से
तुम्हारे खौफ की सत्ता कायम है

सुनो,
स्वात घाटी पर मंडराते गिद्धों,
तुम्हारे सच के अलावा
कुछ और भी सच है
जिसे तुम सुनना नहीं चाहते
जिसे किसी ज़िंदगी के
गीत की तरह
सारे जहाँ के बच्चे गा रहे हैं।