भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ बातें / अनिता भारती
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 14 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |संग्रह=एक क़दम मेरा ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सुनो भइया,
कितनी सुंदर होती है
वह आजादी
जो केवल
अपने लिए होती है
सुनो भइया,
कितनी सुंदर होती है
वह बहस
जिसमें निर्णय तो लिए जायें
पर न किया जाये
उन्हें लागू
किसी के हित में
सुनो भइया,
किसी सुंदर होती है
वह दुनिया
जिसमें हम रात-दिन
सपने देखे
सबकी बराबरी के
मगर जागते हुए मौन रह जाये
बराबरी के सवाल पर
सुनो भइया,
कितनी सुंदर होती हैं
वह औरतें
जो दहलीज फाँद जाती हैं
पर घर की औरत
रहे दहलीज में
इसके लिए
करते हैं प्राण-प्रण
पूरी कोशिश