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अनवरत / अनिता भारती
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भरोसा
कोई पका फल नहीं
जिसे आप
जब चाहे तोड़ कर खा ले
फल मे तभी आता है मीठापन
जब वह धीरे-धीरे पककर
तैयार होता है
ठीक उसी तरह
जमता है विश्वास
जो कोल्हू के बैल की तरह
दिन रात
घडी की टिक-टिक की तरह
चलता है
और अंत में देता है
अपने पसीने की खुशबू से
महकता रसीला उत्पाद
सच नहीं होता
रसीला लुभावना जीवनदायी उत्पाद
सच होता है
उसका अस्तित्व संघर्ष