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अतीत की चुभन / उमा अर्पिता
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अतीत की यादों के
टूटे काँच को
मैं--
दूर/बहुत दूर
फेंक चुकी थी, पर
अब भी,
जब मैं नए खूबसूरत
ख्यालों/ख्वाबों को
बुनने लगती हूँ, तो
पुरानी/बिखरी यादों की
कोई किरच
हथेलियों में चुभ जाती है
और, रिसते खून से
रंग उठता है
मेरा वर्तमान...!