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उम्र का दौर / उमा अर्पिता
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इक उम्र
वो भी आएगी, जब
चढ़ी धूप
मुंडेरे से उतर
आँगन के किसी कोने में
सिमटती/खिसकती चली जाएगी!
बदलने लगेंगे शब्दों के/चीजों के अर्थ
बदलती जाएगी हर परिभाषा
और होने लगेगा यकीं, कि
आसमाँ छू लेना
सचमुच असंभव है...!