भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो मिरा होगा ये सोचा ही नहीं / सय्यद अहमद 'शमीम'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:47, 20 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सय्यद अहमद 'शमीम' }} {{KKCatGhazal}} <poem> वो मिर...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो मिरा होगा ये सोचा ही नहीं
ख़्वाब ऐसा कोई देखा ही नहीं

यूँ तो हर हादसा भूला लेकिन
उसका मिलना कभी भूला ही नहीं

मेरी रातों के सियह आँगन में
चाँद कोई कभी चमका ही नहीं

ये तअल्लुक़ भी रहे या नहीं रहे
दिल-क़लंदर का ठिकाना ही नहीं