भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खट्टी चटनी जैसी माँ / निदा फ़ाज़ली

Kavita Kosh से
Hem jyotsana (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 15:55, 24 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली }} बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ , याद आता है चौका-बासन, चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।

बाँस की खुर्री खाट के ऊपर हर आहट पर कान धरे , आधी सोई आधी जागी थकी दुपहरी जैसी माँ ।

चिड़ियों के चहकार में गूँजे राधा-मोहन अली-अली , मुर्गे की आवाज़ से खुलती, घर की कुंड़ी जैसी माँ ।

बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन थोड़ी-थोड़ी सी सब में , दिन भर इक रस्सी के ऊपर चलती नटनी जैसी मां ।

बाँट के अपना चेहरा, माथा, आँखें जाने कहाँ गई , फटे पुराने इक अलबम में चंचल लड़की जैसी माँ ।