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एक दरख़्त एक तारीख़ / हसन 'नईम'

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जैसे झुक कर उस ने सरगोशी में मुझ से ये कहा
वो दयार-ए-ग़र्ब हो कि गुलसितान-ए-शर्क़ हो
ज़ुल्म के मौसब में बू-ए-गुल से खिलते हैं गुलाब
जुस्तुजू की मंज़िलों में ख़्वाब की मिशअल लिए
डालियों पर आ के गिरते हैं थक-माँदे परिंद
आषियाँ-बदीं में रंग-ओ-नस्ल की तमईज़ क्या
तफ़रीक़ क्या
जाबिर ओ मजबूर की दुनिया अलग उक़्बा अलग