भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़ुदरत से वह जाने तमन्ना ऐसी अदा कुछ पाये है / अबू आरिफ़
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 27 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अबू आरिफ़ }} {{KKCatGhazal}} <poem> क़ुदरत से वह ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
क़ुदरत से वह जाने तमन्ना ऐसी अदा कुछ पाये है
उसके परतवे हुस्न से गुल भी अपना रंग चुराये है
हुस्न-ए-अज़ल से ले जाते है दीवानों को मक़तल तक
इश्क़ ने पाया ऐसा जुनूँ कि मक़तल भी थरराये है
गौहर मोती लाल जमुर्रद ये सब तो नायाब सही
उनके लब का एक तबस्सुम सब पे सबकत पाये है
खून-ए-जिगर से सींचा हमने गुलशन की हर डाली को
फसले बहाराँ आई जब तो माली हमें सताये है
तर्के खामोशी करके हम तो चले है कूये जानाँ को
जैसे-जैसे क़दम बढ़े है आरिफ तो घबराये है