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फेन हमार मन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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फेन हमार मन
घेरा में घेरा गइल
फेन हमरा आँखन पर
झँपना झँपा गइल।
प्रभु हो
फेन हमार मन
जंजाल-जल मेभें पड़ गइल।
फेन हमार मन
दुनियादारी बतकही में
जमे लागेल, रमे लागल।
फेन हमार मन
एने-ओने भटके लगल
एने-ओने भरमे लगल।
फेन हमार चित्त
चंचल चाल चले लागल।
फेन नाना चाहना के
बहुत-बहुत वसन के
लू-लपट उठे लगल
आग भीतर जरे लागल।।
फेन तहरा चरनन से
दूर हम फेंका गइलीं
अलग विलग हो गइलीं
अपने बुरबकहीं से
खुदे हम ठगा गइलीं।।
प्रभु हो, निहोरा बा-
तहरा से निहोरा बा-
दुनिया के हलचल में
नीरव तहार बानी
हमरा हृदय तल में
जा करके डूबे ना
हमरा हृदय बीचे
कबो ना अलोत होखे।
सभका में हरदम हम
तहरे के देखत रहीं
जहाँ कहीं रहीं तहाँ
हरदम तू साथे रहऽ
अपना में हमरा के
हरदम लुका के रहऽ
जहाँ रहीं, तहाँ प्रभु
हमरा तूं साथे रहऽ।।
त्रिभुवन समूचा ई
आलोक भरल वसुधा ई
अखंड बनल रहे प्रभु,
चेतना के परदा पर
चेतना के फलक पर
प्रभु हो निहोरा इहे
तहरा से निहोरा बा।