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नजीर / शर्मिष्ठा पाण्डेय
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शामिल जो मुखबिरी में था, वजीर हो गया
बंदा हदों को लांघता नजीर हो गया
इतिहास है गवाह, सदा देवों की जन्नत
शैतान क्या हड़पेगा, जो कश्मीर हो गया
हल जोतते हाथों की लकीरें हुईं मुफलिस
मंडी में दलाली से वो अमीर हो गया
हम लहरें पीटते रहे मोती की खोज में
छल्ले में कांच जड़के वो नादिर हो गया
काला-सफ़ेद जांचते इक उम्र ढल गयी
कुछ शोख रंग भरके वो तस्वीर हो गया
शीशे के से जज्बातों का है टूटना ज़ारी
मजबूत फलसफों से वो ज़ंजीर हो गया
आदम की बस्तियों में शपा इन्सां तलाशे
कर भेड़िया खुदा-खुदा, फ़कीर हो गया