भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूर्य आराधना / शर्मिष्ठा पाण्डेय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:09, 3 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शर्मिष्ठा पाण्डेय }} {{KKCatGeet}} <poem> हल्द...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हल्दी घोले पिसे चावलों के ऐपन से
लीपी गयी पीली मिट्टी की गोल वेदी पर यत्नपूर्वक
सजाये गए 'स्वास्तिक' के मध्य पुण्य की कामना लिए
धरती हूँ 'गंगाजल' से भरा पवित्र कलश
प्रज्वलित करती हूँ डगमगाती शीतल लहरों पर अक्षय-दीप
कमलपुष्प के आकार में ढालती हूँ
अंजुरी समर्पित करती हूँ
आस्था का अर्घ्य 'उदयांचलअस्तांचल गामी' शक्ति,
उर्जा के स्त्रोत
'भास्कर रवि' की अभ्यर्थना में
संकलित करती हूँ
समस्त प्रकाशपुंज मस्तक के बीचोबीच
प्रदीप्त हो उठती है नाभि
गहन रात्रि में दप-दप चमकता है ललाट
भंग हो उठती है नीरवता
विश्राम की कामना लिए
दक्षिणायन सूर्य के पुनः उत्तरायण
होने तक अनवरत है आराधना चलती रहे निरंतर
ॐ सूर्याय नमः
ॐ भास्कराय नमः