भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सानती हूँ गीली माटी / शर्मिष्ठा पाण्डेय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:29, 3 अगस्त 2013 का अवतरण
सानती हूँ गीली माटी
पूजती हूँ पार्थिव
चढ़ाती हूँ चन्दन, पुष्प
अर्पित करती हूँ सर्वस्व
पीती हूँ हलाहल
हो जाती हूँ उन्मत्त
धारण करती हूँ 'ॐ'
करती हूँ भस्म
बन जाती हूँ 'सती'
"नाथ"
कभी तुम भी तो
बन जाओ
"शिव"