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हमार गीत आपन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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प्रभु हो
हमार गीत आपन सब अलंकार
उतार के फेंक देलस आज।
तहरा लगे साज-शभेंृगर के
अहंकार कइसन?
हमरा-तहर पूर्ण मिलन मेभें
अलंकार-आभूषण से बध हो जल।
अलंकारन के झनझनाहट से
तहार स्वर छपित हो जाला।
तहरा सामने
कवि बने के हमार अभिमान
भला कवना काम के?
हे महाकवि
हम त तहरा चरनन के चेरा हईं
हमरा जीवनरूपी बाँसुरी में
आपन सुर भर द नाथ।