भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूल के अस्मिता बचावे के / मनोज भावुक

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:38, 10 अगस्त 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूल के अस्मिता बचावे के
काँट चारो तरफ उगावे के

ए जी ! बाटे बहार गुलशन में
आईं सहरा में गुल खिलावे के

ऊ जे तूफान के बुझा देवे
एगो अइसन दिया जरावे के

एह दशहरा में कवनो पुतला ना
मन के रावण के तन जरावे के

तय कइल ई बहुत जरूरी बा
माथ कहवां ले बा झुकावे के

आईं हियरा के झील में अपना
प्यार के इक कमल खिलावे के

काम अइसन करे के जवना से
पीठ पीछे भी मान पावे के

जिस्म जर जाई एक दिन 'भावुक'
रूह के रूह से मिलावे के