भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बड़ा मजा आता / श्रीप्रसाद
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:55, 12 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatB...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रसगुल्लों की खेती होती,
बड़ा मजा आता।
चीनी सारी रेती होती,
बड़ा मजा आता।
बाग लगे चमचम के होते,
बड़ा मजा आता।
शरबत के सब बहते सोते,
बड़ा मजा आता।
चरागाह हलवे का होता,
बड़ा मजा आता।
हर पर्वत बरफी का होता।
बड़ा मजा आता।
लड्डू की सब खानें होतीं,
बड़ा मजा आता।
दुनिया घर में पेड़े बोती,
बड़ा मजा आता।
मिलती रुपए किलो मिठाई,
बड़ा मजा आता।
रुपए होते पास अढ़ाई,
बड़ा मजा आता।