भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेघ मेरे ! मुझे घेरे !! / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 12 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेन्द्र कुमार |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <p...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मेघ मेरे !
मुझे घेरे !
नदी-तालों में उतरते
मछलियों-सी चाल करते
हर गली हर मोड़ को
मुश्किल बनाते
घुप अन्धेरे ।
खेत पर रकबा बँधा है
खुले मुँह की बात क्या है
बैठने को घर नहीं है
बाग़ में डालेंगे डेरे ।
साँस कुहरे में टँगी है
बाप-दादों की ज़मीं है
शाम का वादा किए थे
आ गए कैसे सबेरे ।