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मेघ मेरे ! मुझे घेरे !! / देवेन्द्र कुमार

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मेघ मेरे !
मुझे घेरे !

नदी-तालों में उतरते
मछलियों-सी चाल करते
हर गली हर मोड़ को
मुश्किल बनाते
घुप अन्धेरे ।

खेत पर रकबा बँधा है
खुले मुँह की बात क्या है
बैठने को घर नहीं है
बाग़ में डालेंगे डेरे ।

साँस कुहरे में टँगी है
बाप-दादों की ज़मीं है
शाम का वादा किए थे
आ गए कैसे सबेरे ।