भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:51, 13 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनंजय वर्मा |संग्रह=नीम की टहनी / ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)
लिपी-पुती ढिगाई रात
चौक पुरी चित्र लिखी
कलश धरे खूँट पर
चन्दा की मूरत पूजा की वेदी पर
मंडोवा सजा नखत प्रसूनों से
नीले चद्दर पर लकलकाते जरी के तार ।
बिदाते बसन्त में बिखरता
पलाश का पराग
सरसराती हवा के झोंकों में
बिजन डुलाते पत्तों पर
चिलकती है चाँदनी,
नकुओं में रतरनियाँ की महक मादल नकेल
वीराने की इस बेबसी में
निर्द्वन्द्व पड़ती है
और चौकड़ी भरते हैं सेमरी बादल,
कामनाएँ ज्यों अपूरन,
चेतना के शीशे पर धुँधला गई हैं ।