भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुख-दुख / धनंजय वर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:21, 13 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनंजय वर्मा |संग्रह=नीम की टहनी / ध...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सुख
सरिता का जल
बहता बहाता
बाँधों में बाँधते
रोकते अगोरते हम
क्या बाँध पाते हैं...
दुख स्वयं बाँध
चौहद्दी ज़मीन की
बहना तो दूर की
कीच कांदो पालता है
मन से उमग कर
आत्मा के पंकज उगाता है...