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शहीदों की माँ / धीरेन्द्र अस्थाना

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गाँव के अंतिम छोर पर
था एक टूटा हुआ
माटी का घर!
जिसमे रहती थीं
एक बूढी माँ!

आज उन्होंने छोड़ दिया
वह घर और संसार!
जिसके लिए उन्होंने
किये थे कुर्बान
अपने चार जवान बेटे!

सुना है वो बेटे
शहीद हुए थे देश की
आन और सम्मान
को बचाने में!

पर माँ हो गयी थी
बेबस और लाचार;
यूँ ही झूठा एक तमगा
मिल गया था उसे
जीने के लिए!
जो नहीं मिटा सकता था
उसके पेट व जरूरतों की
भूख और मांगो को!

घिसटते-घिसटते
बिता दिए थे उन्होंने
पूरे चालीस साल!

कोई नहीं पूछने आया
उस माँ की विवशता का
कारण और दिखाने
समाधान का रास्ता!

क्यों किसी के सामने
फैलाती अपने दीन हाँथ
आखिर वह थीं तो
शहीदों की माँ!

( शत -शत नमन ऐसी ही अनगिनत माँओं के त्याग को और उनकी अपार सहनशक्ति को!)