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लाजो / शिव शंकर सहाय ‘सिद्धार्थ’
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दुःख यातना में टभकत मन
जब कबही रिसोयेला
त्रासदी में सिसकत हिया
फह-फह फफायेला
तब-तब
लाजो
जनम देबेली हमरा के अपना भीतर।
जिनिगी के युद्ध में
जब
हम श्लथ हो जाइला
तब
उनकर प्रेम-अमृत से
सींचाइल हमार जिया
चह-चह हरिआ जाला।
अंकवारी के गरमाहट
देह के मंजर-गंध
आ
उनकर सांसन के तपिश में
सेवात हम
फेरू, जीवंत हो जाइला।
आ
हमरा पतो ना चल पावे कि
लाजो
कब
हमार मतारी बन जाली......