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मुहाने पर नदी और समुद्र-3 / अष्टभुजा शुक्ल
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उधर नदी
मुड़-मुड़कर देखती थी
अपनी लम्बाई
और चली गई दूरी
इधर समुद्र
आकाश की छाती से
साध रहा था
अपनी छाती
नदी थक रही थी
चल-चलकर
समुद्र थक रहा था
पड़े-पड़े