भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाहती हूँ शब्द उगाऊं / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:51, 29 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रति सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैं चाहती हूँ शब्द उगाऊं
फलों की तरह नहीं
सब्जी की तरह भी नहीं
फुलवारी की तरह भी नहीं
जंगल की तरह
कुछ लम्बे, कुछ टेड़े
कुछ तिरछे
कुछ बाँके
कमजोर, मजबूत
शब्द खड़े हो
दरख्तों की तरह
फैले घास की तरह
चढ़े लताओं की तरह
खिले फूलों की तरह
पके फलों की तरह
मैं
चिड़िया,
पीली चोंच वाली
उड़ूँ...फुदकूँ
गाऊं.. नाचूँ
जब तक मैं
खुद
बन जाऊँ
शब्द