भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऐसा नहीं होता तो / हरे प्रकाश उपाध्याय
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 31 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरे प्रकाश उपाध्याय |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अच्छा है कि हैं देश में निर्दोष
कि कानून उन्हें सजा दे रहा है
और रक्षा कर पा रहा है अपनी मर्यादा की
अच्छा है कि हैं अबले
कि सधाते हैं सबले अपनी जोम
अच्छा है कि बचे हैं गरीब
कि अमीर ऐंठते हैं अपनी अमीरी
अच्छा है कि सीधे लोग हैं अड़ोस-पड़ोस
कि गुंडों की चलती है गुंडई
अच्छा है कि जनता है निरीह
कि चल पा रही है सरकार निरंकुश
अच्छा है कि रहे हैं लोग मूर्ख के मूर्ख
कि चालाक कर रहे हैं चालाकियाँ
अच्छा है कि पूजने वाले हैं
तो बची है प्रभु की प्रभुता
नहीं तो क्या होता
ऐसा नहीं होता तो
कैसा होता मेरे दोस्त!
यह दुनिया कैसी दिखती तब?